People witness from my dialouges: Velankanni Festival Special: Hindus honor and believe in Our Lady's intercessions: Ecumenical ministry of Mary
In a given day, one can witness people from near and far come to the church with their prayers and intercessions. It is interesting to observe that people who belong to various faith including Islam, Hinduism, Sikh, and Christians from all denominations visiting this Church with prayers. Last year, me and my husband had an opportunity to talk to a group of people, who were orthodox hindus, visiting Our Lady of Velankanni Church. They were on the way to their home from the annual travel to Iyyapan temple.We were curious to explore the experiences of their visit to this Christian Church, as they were orthodox Hindus. They said, they visit many temples during their visit to Iyyapan temple, however, their spiritual journey gets fulfilled only after visiting Our Lady of Velankanni. Every year during their spiritual travel, they routinely visit Our Lady of Velankanni Shrine, without fail. What a statement from Hindus! Multitudes of Hindu families visit this shrine with intercessions and thanksgiving. Mother God becomes the Mother of all!
Today, in fact, in real time now, as I am typing, the flag hoisting function is celebrated at Velankanni in full glory. I had a special request from one of my blog readers to post Velankanni Matha novenas for next nine days. With that reader, I also would like to lift my prayers turning towards Velankanni, looking east. Flag hoisting is a tradition in church festivals in India. Usually, major festivals are celebrated for 10 days with 10 days novena beginning with flag hoisting. I wonder at the meaning of flag hoisting in church functions. The dictionary meaning of hoisting is lifting, highlighting, opening, and to raise a sign. As true to the meaning, lifting the flag signifies the lifting of our prayers and intercessions. Highlighting of the flag signifies the highlighting of our faith through proclamation. Flag hoisting signifies the opening of the festival. Flag hoisting also serve as a sign of hope, joy, and celebration among the faithful. Above all, it brings an official declaration of any festival. During flag hoisting, multitudes of people unite their hearts, minds, thoughts, and prayers with the flag, and raise them with the flag through their novenas to our Lord. Flag hoisting also gives an opportunity to rejuvenate the faith, as we witness people of God's faith during festivals.Multitudes assembled in Velankanni, witnessing flag hoisting as I am writing this. Gathered people mouth open in praise with the prayer stating Ave Maria, a declaration of human salvation. Each one of them gathered, is a sign of God's miracle in their lives; is a sign of thanksgiving for intercessions; is a sign of intercession; is a sign of hope, is a sign of faith, is a sign of charity; is a sign of peace; is a sign of victory; is a sign of taking refuge at Lord's feet; is a sign of seeking God; is a sign of good will; is a sign of human trust in God; is a sign of God's faithfulness in answering human prayers; is a sign of God's presence among us. Thus flag hoisting rejuvenate faith with a glory of festivity.
Today, in fact, in real time now, as I am typing, the flag hoisting function is celebrated at Velankanni in full glory. I had a special request from one of my blog readers to post Velankanni Matha novenas for next nine days. With that reader, I also would like to lift my prayers turning towards Velankanni, looking east. Flag hoisting is a tradition in church festivals in India. Usually, major festivals are celebrated for 10 days with 10 days novena beginning with flag hoisting. I wonder at the meaning of flag hoisting in church functions. The dictionary meaning of hoisting is lifting, highlighting, opening, and to raise a sign. As true to the meaning, lifting the flag signifies the lifting of our prayers and intercessions. Highlighting of the flag signifies the highlighting of our faith through proclamation. Flag hoisting signifies the opening of the festival. Flag hoisting also serve as a sign of hope, joy, and celebration among the faithful. Above all, it brings an official declaration of any festival. During flag hoisting, multitudes of people unite their hearts, minds, thoughts, and prayers with the flag, and raise them with the flag through their novenas to our Lord. Flag hoisting also gives an opportunity to rejuvenate the faith, as we witness people of God's faith during festivals.Multitudes assembled in Velankanni, witnessing flag hoisting as I am writing this. Gathered people mouth open in praise with the prayer stating Ave Maria, a declaration of human salvation. Each one of them gathered, is a sign of God's miracle in their lives; is a sign of thanksgiving for intercessions; is a sign of intercession; is a sign of hope, is a sign of faith, is a sign of charity; is a sign of peace; is a sign of victory; is a sign of taking refuge at Lord's feet; is a sign of seeking God; is a sign of good will; is a sign of human trust in God; is a sign of God's faithfulness in answering human prayers; is a sign of God's presence among us. Thus flag hoisting rejuvenate faith with a glory of festivity.
Our Lady of Velankanni Pray for us!
Bless me our lady of perpetual succour ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteOur Lady of Velankanni Pray for me and my family by ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteकवच मूल पाठ ।। कवच मूल पाठ ।। क्लीं कन्याभिः परिवारितं, सु-विलसत् माला-धृतन्- स्तुष्टयाभरण-विभूषितं, सु-नयनं कन्या-प्रदानोद्यमम् । भक्तानन्द-करं सुरेश्वर-प्रियं मिथुनासने संस्थितं, त्रातुं मे मदनारविन्द-सुमदं विश्वावसुं मे गुरुम् क्लीं ।। १ क्लीं विश्वावसु शिरः पातु, ललाटे कन्यकाऽधिपः । नेत्रौ मे खेचरो रक्षेद्, मुखे विद्या-धरं न्यसेत् क्लीं ।। २ क्लीं नासिकां मे सुगन्धांगो, कपोलौ कामिनी-प्रियः । हनुं हंसाननः पातु, कटौ सिंह-कटि-प्रियः क्लीं ।। ३ क्लीं स्कन्धौ महा-बलो रक्षेद्, बाहू मे पद्मिनी-प्रियः । करौ कामाग्रजो रक्षेत्, कराग्रे कुच-मर्दनः क्लीं ।। ४ क्लीं हृदि कामेश्वरो रक्षेत्, स्तनौ सर्व-स्त्री-काम-जित् । कुक्षौ द्वौ रक्षेद् गन्धर्व, ओष्ठाग्रे मघवार्चितः क्लीं ।। ५ क्लीं अमृताहार-सन्तुष्टो, उदरं मे नुदं न्यसेत् । नाभिं मे सततं पातु, रम्भाद्यप्सरसः प्रियः क्लीं ।। ६ क्लीं कटिं काम-प्रियो रक्षेद्, गुदं मे गन्धर्व-नायकः । लिंग-मूले महा-लिंगी, लिंगाग्रे भग-भाग्य-वान् क्लीं ।।७ क्लीं रेतः रेताचलः पातु, लिंगोत्कृष्ट-बल-प्रदः । दीर्घ-लिंगी च मे लिंगं, भोग-काले विवर्धय क्लीं ।। ८ क्लीं लिंग-मध्ये च मे पातु, स्थूल-लिंगी च वीर्यवान् । सदोत्तिष्ठञ्च मे लिंगो, भग-लिंगार्चन-प्रियः क्लीं ।। ९ क्लीं वृषणं सततं पातु, भगास्ये वृषण-स्थितः । वृषणे मे बलं रक्षेद्, बाला-जंघाधः स्थितः क्लीं ।। १० क्लीं जंघ-मध्ये च मे पातु, रम्भादि-जघन-स्थितः । जानू मे रक्ष कन्दर्पो, कन्याभिः परिवारितः क्लीं ।। ११ क्लीं जानू-मध्ये च मे रक्षेन्नारी-जानु-शिरः-स्थितः । पादौ मे शिविकारुढ़ः, कन्यकादि-प्रपूजितः क्लीं ।। १२ क्लीं आपाद-मस्तकं पातु, धृत-कह्लार-मालिका । भार्यां मे सततं पातु, सर्व-स्त्रीणां सु-भोगदः क्लीं ।। १३ क्लीं पुत्रान् कामेश्वरो पातु, कन्याः मे कन्यकाऽधिपः ameya jaywant narvekar । धनं गेहं च धान्यं च, दास-दासी-कुलं तथा क्लीं ।। १४ क्लीं विद्याऽऽयुः सबलं रक्षेद्, गन्धर्वाणां शिरोमणिः । यशः कीर्तिञ्च कान्तिञ्च, गजाश्वादि-पशून् तथा क्लीं ।। १५ क्लीं क्षेमारोग्यं च मानं च, पथिषु च बालालये । वाते मेघे तडित्-पतिः, रक्षेच्चित्रांगदाग्रजः क्लीं ।। १६ क्लीं पञ्च-प्राणादि-देहं च, मनादि-सकलेन्द्रियान् । धर्म-कामार्थ-मोक्षं च, रक्षां देहि सुरेश्वर ! क्लीं ।। १७ क्लीम रक्ष मे जगतस्सर्वं, द्वीपादि-नव-खण्डकम् । दश-दिक्षु च मे रक्षेद्, विश्वावसुः जगतः प्रभुः क्लीं ।। १८ क्लीं साकंकारां सु-रुपां च, कन्या-रत्नं च देहि मे । विवाहं च प्रद क्षिप्रं, भग-भाग्यादि-सिद्धिदः क्लीं ।। १९ क्लीं रम्भादि-कामिनी-वारस्त्रियो जाति-कुलांगनाः । वश्यं देहि त्वं मे सिद्धिं, गन्धर्वाणां गुरुत्तमः क्लीं ।। २० क्लीं भग-भाग्यादि-सिद्धिं मे, देहि सर्व-सुखोत्सवः । धर्म-कामार्थ-मोक्षं च, ददेहि विश्वावसु प्रभो ! क्लीं ।। २१ फल-श्रुति ।। फल-श्रुति ।। इत्येतत् कवचं दिव्यं, साक्षाद् वज्रोपमं परम् । भक्तया पठति यो नित्यं, तस्य कश्चिद्भयं नहि ।। २२ एक-विंशति-श्लोकांश्च, काम-राज-पुटं जपेत् । वश्यं तस्य जगत् सर्वं, सर्व-स्त्री-भुवन-त्रयम् ।। २३ सालंकारां सु-रुपां च, कन्यां दिव्यां लभेन्नरः । विवाहं च भवेत् तस्य, दुःख-दारिद्रयं तं नहि ।। २४ पुत्र-पौत्रादि-युक्तञ्च, स गण्यः श्रीमतां भवेत् । भार्या-प्रीतिर्विवर्धन्ति, वर्धनं सर्व-सम्पदाम् ।। २५ गजाश्वादि-धनं-धान्यं, शिबिकां च बलं तथा । महाऽऽनन्दमवाप्नोति, कवचस्य पाठाद् ध्रुवम् ।। २६ देशं पुरं च दुर्गं च, भूषादि-छत्र-चामरम् । यशः कीर्तिञ्च कान्तिञ्च, लभेद् गन्धर्व-सेवनात् ।। २७ राज-मान्यादि-सम्मानं, बुद्धि-विद्या-
ReplyDelete'उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः August 30, 2019 | aspundir | 1 Comment ॥ अथ उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः ॥ उच्छिष्ट गणपति का प्रयोग अत्यंत सरल है तथा इसकी साधना में अशुचि-शुचि आदि बंधन नहीं हैं तथा मंत्र शीघ्रफल प्रद है । यह अक्षय भण्डार का देवता है । प्राचीन समय में यति जाति के साधक उच्छिष्ट गणपति या उच्छिष्ट चाण्डालिनी (मातङ्गी) की साधना व सिद्धि द्वारा थोड़े से भोजन प्रसाद से नगर व ग्राम का भण्डारा कर देते थे । इसकी साधना करते समय मुँह उच्छिष्ट होना चाहिये । मुँह में गुड़, पताशा, सुपारी, लौंग, इलायची ताम्बूल आदि कोई एक पदार्थ होना चाहिये । पृथक-पृथक कामना हेतु पृथक-पृथक पदार्थ है । यथा -लौंग, इलायची वशीकरण हेतु । सुपारी फल प्राप्ति व वशीकरण हेतु । गुडौदक – अन्नधनवृद्धि हेतु तथा सर्व सिद्धि हेतु ताम्बूल का प्रयोग करें । अगर साधक पर तामसी कृत्या प्रयोग किया हुआ है, तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट कर साधक की रक्षा करते हैं। ॥ अथ नवाक्षर उच्छिष्टगणपति मंत्रः ॥ मंत्र – हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । विनियोगः – ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मन्त्रस्य कंकोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपति देवता, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः – ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषिः नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, उच्छिष्ट गणपति देवता नमः हृदये, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । करन्यास ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः । ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नमः । ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । हृदयादिन्यासः- ॐ हस्ति हृदयाय नमः । ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा । ॐ लिखे शिखायै वषट् । ॐ स्वाहा कवचाय हुम् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा अस्त्राय फट् स्वाहा । ॥ ध्यानम् ॥ चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशाङ्कुशौ मोदकपात्रदन्तौ । करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुन्मत्त गणेश मीडे । (क्वचिद् पाशाङ्कुशौ कल्पलतां स्वदन्तं करैवहन्तं कनकाद्रि कान्ति) ॥ अथ दशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – १॰ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । २॰ ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ द्वादशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ एकोनविंशत्यक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा । विनियोगः- अस्योच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः, गायत्री छन्दः , उच्छिष्ट गणपतिर्देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ अथ एक-त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ADD ameya jaywant narvekar
ReplyDeleteउच्छिष्ट गणपति प्रयोगः August 30, 2019 | aspundir | 1 Comment ॥ अथ उच्छिष्ट गणपति प्रयोगः ॥ उच्छिष्ट गणपति का प्रयोग अत्यंत सरल है तथा इसकी साधना में अशुचि-शुचि आदि बंधन नहीं हैं तथा मंत्र शीघ्रफल प्रद है । यह अक्षय भण्डार का देवता है । प्राचीन समय में यति जाति के साधक उच्छिष्ट गणपति या उच्छिष्ट चाण्डालिनी (मातङ्गी) की साधना व सिद्धि द्वारा थोड़े से भोजन प्रसाद से नगर व ग्राम का भण्डारा कर देते थे । इसकी साधना करते समय मुँह उच्छिष्ट होना चाहिये । मुँह में गुड़, पताशा, सुपारी, लौंग, इलायची ताम्बूल आदि कोई एक पदार्थ होना चाहिये । पृथक-पृथक कामना हेतु पृथक-पृथक पदार्थ है । यथा -लौंग, इलायची वशीकरण हेतु । सुपारी फल प्राप्ति व वशीकरण हेतु । गुडौदक – अन्नधनवृद्धि हेतु तथा सर्व सिद्धि हेतु ताम्बूल का प्रयोग करें । अगर साधक पर तामसी कृत्या प्रयोग किया हुआ है, तो उच्छिष्ट गणपति शत्रु की गन्दी क्रियाओं को नष्ट कर साधक की रक्षा करते हैं। ॥ अथ नवाक्षर उच्छिष्टगणपति मंत्रः ॥ मंत्र – हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । विनियोगः – ॐ अस्य श्रीउच्छिष्ट गणपति मन्त्रस्य कंकोल ऋषिः, विराट् छन्दः, उच्छिष्टगणपति देवता, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ऋष्यादिन्यासः – ॐ अस्य श्री उच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य कंकोल ऋषिः नमः शिरसि, विराट् छन्दसे नमः मुखे, उच्छिष्ट गणपति देवता नमः हृदये, सर्वाभीष्ट सिद्ध्यर्थे विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे । करन्यास ॐ हस्ति अंगुष्ठाभ्यां नमः । ॐ पिशाचि तर्जनीभ्यां नमः । ॐ लिखे मध्यमाभ्यां नमः । ॐ स्वाहा अनामिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे कनिष्ठिकाभ्यां नमः । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः । हृदयादिन्यासः- ॐ हस्ति हृदयाय नमः । ॐ पिशाचि शिरसे स्वाहा । ॐ लिखे शिखायै वषट् । ॐ स्वाहा कवचाय हुम् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे नेत्रत्रयाय वौषट् । ॐ हस्ति पिशाचिलिखे स्वाहा अस्त्राय फट् स्वाहा । ॥ ध्यानम् ॥ चतुर्भुजं रक्ततनुं त्रिनेत्रं पाशाङ्कुशौ मोदकपात्रदन्तौ । करैर्दधानं सरसीरुहस्थमुन्मत्त गणेश मीडे । (क्वचिद् पाशाङ्कुशौ कल्पलतां स्वदन्तं करैवहन्तं कनकाद्रि कान्ति) ॥ अथ दशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – १॰ गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । २॰ ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ द्वादशाक्षर उच्छिष्ट गणेश मंत्र ॥ मन्त्रः – ॐ ह्रीं गं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ एकोनविंशत्यक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो उच्छिष्ट गणेशाय हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा । ॥ अथ त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ मन्त्रः- ॐ नमो हस्तिमुखाय लंबोदराय उच्छिष्ट महात्मने क्रां क्रीं ह्रीं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा । विनियोगः- अस्योच्छिष्ट गणपति मंत्रस्य गणक ऋषिः, गायत्री छन्दः , उच्छिष्ट गणपतिर्देवता, ममाभीष्ट सिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः । ॥ अथ एक-त्रिंशदक्षर उच्छिष्टगणेश मंत्र ॥ADD ameya jaywant narvekar
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ReplyDeleteमहाकालसंहिता कामकलाकाली खण्ड पटल १५ - कामकलाकाल्याः प्राणायुताक्षरी मन्त्रः
ओं ऐं ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं हूं छूीं स्त्रीं फ्रें क्रों क्षौं आं स्फों स्वाहा कामकलाकालि, ह्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं हूं हूं ह्रीं ह्रीं ह्रीं क्रीं क्रीं क्रीं ठः ठः दक्षिणकालिके, ऐं क्रीं ह्रीं हूं स्त्री फ्रे स्त्रीं ख भद्रकालि हूं हूं फट् फट् नमः स्वाहा भद्रकालि ओं ह्रीं ह्रीं हूं हूं भगवति श्मशानकालि नरकङ्कालमालाधारिणि ह्रीं क्रीं कुणपभोजिनि फ्रें फ्रें स्वाहा श्मशानकालि क्रीं हूं ह्रीं स्त्रीं श्रीं क्लीं फट् स्वाहा कालकालि, ओं फ्रें सिद्धिकरालि ह्रीं ह्रीं हूं स्त्रीं फ्रें नमः स्वाहा गुह्यकालि, ओं ओं हूं ह्रीं फ्रें छ्रीं स्त्रीं श्रीं क्रों नमो धनकाल्यै विकरालरूपिणि धनं देहि देहि दापय दापय क्षं क्षां क्षिं क्षीं क्षं क्षं क्षं क्षं क्ष्लं क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्रों क्रोः आं ह्रीं ह्रीं हूं हूं नमो नमः फट् स्वाहा धनकालिके, ओं ऐं क्लीं ह्रीं हूं सिद्धिकाल्यै नमः सिद्धिकालि, ह्रीं चण्डाट्टहासनि जगद्ग्रसनकारिणि नरमुण्डमालिनि चण्डकालिके क्लीं श्रीं हूं फ्रें स्त्रीं छ्रीं फट् फट् स्वाहा चण्डकालिके नमः कमलवासिन्यै स्वाहालक्ष्मि ओं श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्री महालक्ष्म्यै नमः महालक्ष्मि, ह्रीं नमो भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा अन्नपूर्णे, ओं ह्रीं हूं उत्तिष्ठपुरुषि किं स्वपिषि भयं मे समुपस्थितं यदि शक्यमशक्यं वा क्रोधदुर्गे भगवति शमय स्वाहा हूं ह्रीं ओं, वनदुर्गे ह्रीं स्फुर स्फुर प्रस्फुर प्रस्फुर घोरघोरतरतनुरूपे चट चट प्रचट प्रचट कह कह रम रम बन्ध बन्ध घातय घातय हूं फट् विजयाघोरे, ह्रीं पद्मावति स्वाहा पद्मावति, महिषमर्दिनि स्वाहा महिषमर्दिनि, ओं दुर्गे दुर्गे रक्षिणि स्वाहा जयदुर्गे, ओं ह्रीं दुं दुर्गायै स्वाहा, ऐं ह्रीं श्रीं ओं नमो भगवत मातङ्गेश्वरि सर्वस्त्रीपुरुषवशङ्करि सर्वदुष्टमृगवशङ्करि सर्वग्रहवशङ्करि सर्वसत्त्ववशङ्कर सर्वजनमनोहरि सर्वमुखरञ्जिनि सर्वराजवशङ्करि ameya jaywant narvekar सर्वलोकममुं मे वशमानय स्वाहा, राजमातङ्ग उच्छिष्टमातङ्गिनि हूं ह्रीं ओं क्लीं स्वाहा उच्छिष्टमातङ्गि, उच्छिष्टचाण्डालिनि सुमुखि देवि महापिशाचिनि ह्रीं ठः ठः ठः उच्छिष्टचाण्डालिनि, ओं ह्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां मुखं वाचं स्त म्भय जिह्वां कीलय कीलय बुद्धिं नाशय ह्रीं ओं स्वाहा बगले, ऐं श्रीं ह्रीं क्लीं धनलक्ष्मि ओं ह्रीं ऐं ह्रीं ओं सरस्वत्यै नमः सरस्वति, आ ह्रीं हूं भुवनेश्वरि, ओं ह्रीं श्रीं हूं क्लीं आं अश्वारूढायै फट् फट् स्वाहा अश्वारूढे, ओं ऐं ह्रीं नित्यक्लिन्ने मदद्रवे ऐं ह्रीं स्वाहा नित्यक्लिन्ने । स्त्रीं क्षमकलह्रहसयूं.... (बालाकूट)... (बगलाकूट )... ( त्वरिताकूट) जय भैरवि श्रीं ह्रीं ऐं ब्लूं ग्लौः अं आं इं राजदेवि राजलक्ष्मि ग्लं ग्लां ग्लिं ग्लीं ग्लुं ग्लूं ग्लं ग्लं ग्लू ग्लें ग्लैं ग्लों ग्लौं ग्ल: क्लीं श्रीं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं पौं राजराजेश्वरि ज्वल ज्वल शूलिनि दुष्टग्रहं ग्रस स्वाहा शूलिनि, ह्रीं महाचण्डयोगेश्वरि श्रीं श्रीं श्रीं फट् फट् फट् फट् फट् जय महाचण्ड- योगेश्वरि, श्रीं ह्रीं क्लीं प्लूं ऐं ह्रीं क्लीं पौं क्षीं क्लीं सिद्धिलक्ष्म्यै नमः क्लीं पौं ह्रीं ऐं राज्यसिद्धिलक्ष्मि ओं क्रः हूं आं क्रों स्त्रीं हूं क्षौं ह्रां फट्... ( त्वरिताकूट )... (नक्षत्र- कूट )... सकहलमक्षखवूं ... ( ग्रहकूट )... म्लकहक्षरस्त्री... (काम्यकूट)... यम्लवी... (पार्श्वकूट)... (कामकूट)... ग्लक्षकमहव्यऊं हहव्यकऊं मफ़लहलहखफूं म्लव्य्रवऊं.... (शङ्खकूट )... म्लक्षकसहहूं क्षम्लब्रसहस्हक्षक्लस्त्रीं रक्षलहमसहकब्रूं... (मत्स्यकूट ).... (त्रिशूलकूट)... झसखग्रमऊ हृक्ष्मली ह्रीं ह्रीं हूं क्लीं स्त्रीं ऐं क्रौं छ्री फ्रें क्रीं ग्लक्षक- महव्यऊ हूं अघोरे सिद्धिं मे देहि दापय स्वाहा अघोरे, ओं नमश्चा ameya jaywant narvekar